बेईमानों के शहर में इमान बिक रहा है,
मैंने सुना है आजकल इन्सान बिक रहा है ।
कहीं तिलक, कहीं टोपी, कहीं तलवार,
पहनावे से सब का भगवान बिक रहा है ।
कोई चांद पर कोई मंगल पर है पहुंचा,
जमीं खत्म हुई तो आसमान बिक रहा है ।
रो रहा है खुदा भी ये देख देख कर,
मेरे नाम से अब तो शैतान बिक रहा है ।
मेरा मजहब, जात सब कुछ बेंच दुंगा
'प्रतिक' बता कहा पर इन्सान बिक रहा है ?
- प्रतिक
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