Saturday, 7 May 2016

बिक रहा है

बेईमानों के शहर में इमान बिक रहा है,
मैंने सुना है आजकल इन्सान बिक रहा है ।

कहीं तिलक, कहीं टोपी, कहीं तलवार,
पहनावे से सब का भगवान बिक रहा है ।

कोई चांद पर कोई मंगल पर है पहुंचा,
जमीं खत्म हुई तो आसमान बिक रहा है ।

रो रहा है खुदा भी ये देख देख कर,
मेरे नाम से अब तो शैतान बिक रहा है ।

मेरा मजहब, जात सब कुछ बेंच दुंगा
'प्रतिक' बता कहा पर इन्सान बिक रहा है ?
- प्रतिक

No comments:

Post a Comment

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...