Thursday, 12 May 2016

तुलसीदास - शूद्र और नारी

     ‘श्री तुलसीकृत रामायण’ के ‘सुन्दरकाण्ड’ में एक चौपाई आती है I जो कुछ इस तरह है...
      “ढोल गँवार सूद्र पसु नारी सकल ताडना के अधिकारी”
     इस चौपाई को पढकर बहुत दुःख हुआ I क्योंकि तुलसीदास जैसे ज्ञानी पुरुष के पास ऐसी निम्न कोटि की सोच का होना बहुत गलत बात है I लेकिन हा इसका मतलब यह नहीं की वह गलत इंसान थे, क्यूंकि हर इंसान हर परिस्थिति में सही हो, यह जरुरी नहीं I राम जब अपने पिता के वचन के लिए चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार करते है, तो वह निर्णय उनको एक आदर्श पुत्र बनाता है I किन्तु वही राम जब एक धोबी की बात को सुनकर सीता का त्याग कर देते है, तो वह एक आदर्श पति की व्याख्या से दूर हो जाते है I उसीतरह तुलसीदास की इस चौपाई में भी वह कुछ ऐसा कह देते है जिनसे उनकी गरिमा को निशंक रूप से हानि पहुँचती है I
     तुलसीदासजी शायद भूल गए की आनेवाली पीढियां इस चौपाई से कितनी गलत सीख लेगी I हर औरत सीता नहीं होती और हर पुरुष राम नहीं होता I किन्तु हम सीता और शूर्पनखा के बिच और राम और रावण के बिच भेद रेखा रखना भूल जाते है I और हमारे भारतीय संविधान की बात करे या फिर आजकल फेशन हो चुकी नारी उद्धारक मानसिकता की बात करे तो हर पुरुष को रावण और हर स्त्री को सीता माना जाता है I
     मैं ये नहीं केहता की हर औरत गलत है, पर हाँ सभी औरते सही हो ऐसा जरुरी तो नहीं I और हम हमारे पूर्वग्रह से हर आदमी को गलत समज लेते है I और यही हमारी सबसे बड़ी मूर्खता है I शायद अब वक्त आ गया है की अब हम औरत और आदमी की जगह सही और गलत के आधार पर सोचना शुरू करे I
     दूसरी बात, इस चौपाई में शुद्र का भी उल्लेख किया गया है I शायद तुलसीदासजी भी तत्कालीन जातिवादी और वर्णवादी नीच मानसिकता से बच नहीं शके I हर किसी के बस में नहीं होता की वह नरसिंह महेता बन शके I
     उस समय तो समाज का एक बहुत बड़ा हिस्सा अशिक्षित था, इसलिए इस नीच मानसिकता का विरोध नहीं हुआ ये हम समज शकते है I किन्तु आज आधुनिक युग में भी जब मैं कुछ पढ़े लिखे जाहिलो को अपनी जाती पर गर्व करते हुए देखता हूं तो बहुत गुस्सा आता है I
     राम ने शबरी के जूठे बेर इसी लिए खाए थे I क्यूंकि वह समाज को बताना चाहते थे की मैं वर्णव्यवस्था या जातिव्यवस्था में नहीं मानता I मेरे लिए हर इंसान समान है I किन्तु हम राम के इस आदेश को आज भी सुनकर अनसुना कर देते है I राम को मानने वाले राम की नहीं मानते ! यही तो है हमारी करुणता I - प्रतिक

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